सोमवार, अगस्त 30, 2004

तुम अपनी हो, जग अपना है

तुम अपनी हो, जग अपना है
किसका किस पर अधिकार प्रिये
फिर दुविधा का क्या काम यहाँ
इस पार या कि उस पार प्रिये ।

देखो वियोग की शिशिर रात
आँसू का हिमजल छोड़ चली
ज्योत्स्ना की वह ठण्डी उसाँस
दिन का रक्तांचल छोड़ चली ।

चलना है सबको छोड़ यहाँ
अपने सुख-दुख का भार प्रिये,
करना है कर लो आज उसे
कल पर किसका अधिकार प्रिये ।

है आज शीत से झुलस रहे
ये कोमल अरुण कपोल प्रिये
अभिलाषा की मादकता से
कर लो निज छवि का मोल प्रिये ।

इस लेन-देन की दुनिया में
निज को देकर सुख को ले लो,
तुम एक खिलौना बनो स्वयं
फिर जी भर कर सुख से खेलो ।

पल-भर जीवन, फिर सूनापन
पल-भर तो लो हँस-बोल प्रिये
कर लो निज प्यासे अधरों से
प्यासे अधरों का मोल प्रिये ।

सिहरा तन, सिहरा व्याकुल मन,
सिहरा मानस का गान प्रिये
मेरे अस्थिर जग को दे दो
तुम प्राणों का वरदान प्रिये ।

भर-भरकर सूनी निःश्वासें
देखो, सिहरा-सा आज पवन
है ढूँढ़ रहा अविकल गति से
मधु से पूरित मधुमय मधुवन ।

यौवन की इस मधुशाला में
है प्यासों का ही स्थान प्रिये
फिर किसका भय? उन्मत्त बनो
है प्यास यहाँ वरदान प्रिये ।

देखो प्रकाश की रेखा ने
वह तम में किया प्रवेश प्रिये
तुम एक किरण बन, दे जाओ
नव-आशा का सन्देश प्रिये ।

अनिमेष दृगों से देख रहा
हूँ आज तुम्हारी राह प्रिये
है विकल साधना उमड़ पड़ी
होंठों पर बन कर चाह प्रिये ।

मिटनेवाला है सिसक रहा
उसकी ममता है शेष प्रिये
निज में लय कर उसको दे दो
तुम जीवन का सन्देश प्रिये ।

- भगवतीचरण वर्मा

3 टिप्पणियाँ:

12:01 pm पर, Blogger Emily Katie ने कहा ...

You can Send Gifts Online for your loved ones staying in India and suprise them !

 
2:07 am पर, Blogger Daisy ने कहा ...

You can Send Gifts to India Online for your loved ones staying in India and suprise them !

 
2:33 am पर, Blogger Rossie ने कहा ...

Online Gift Delivery in India for your loved ones staying in India and suprise them !

 

टिप्पणी करें

<< मुखपृष्ट

गुरुवार, अगस्त 26, 2004

मैं कब से ढूँढ़ रहा हूँ

मैं कब से ढूँढ़ रहा हूँ
अपने प्रकाश की रेखा
तम के तट पर अंकित है
निःसीम नियति का लेखा

देने वाले को अब तक
मैं देख नहीं पाया हूँ,
पर पल भर सुख भी देखा
फिर पल भर दुख भी देखा ।

किस का आलोक गगन से
रवि शशि उडुगन बिखराते?
किस अंधकार को लेकर
काले बादल घिर आते?

उस चित्रकार को अब तक
मैं देख नहीं पाया हूँ,
पर देखा है चित्रों को
बन-बनकर मिट-मिट जाते ।

फिर उठना, फिर गिर पड़ना
आशा है, वहीं निराशा
क्या आदि-अन्त संसृति का
अभिलाषा ही अभिलाषा?

अज्ञात देश से आना,
अज्ञात देश को जाना,
अज्ञात अरे क्या इतनी
है हम सब की परिभाषा ?

पल-भर परिचित वन-उपवन,
परिचित है जग का प्रति कन,
फिर पल में वहीं अपरिचित
हम-तुम, सुख-सुषमा, जीवन ।

है क्या रहस्य बनने में ?
है कौन सत्य मिटने में ?
मेरे प्रकाश दिखला दो
मेरा भूला अपनापन ।

- भगवतीचरण वर्मा

4 टिप्पणियाँ:

11:00 am पर, Blogger Pratik Pandey ने कहा ...

कविता अत्‍यन्‍त मर्मस्‍पर्शी है। लेकिन 'रवि शशि उडुगन बिखराते' पंक्‍ति में उडुगन का क्‍या अर्थ है।

 
12:03 pm पर, Blogger Emily Katie ने कहा ...

Order Personalised Gifts for Bhai Dooj Online

 
2:07 am पर, Blogger Daisy ने कहा ...

You can Send Gifts to India Online for your loved ones staying in India and suprise them !

 
2:24 am पर, Blogger Daisy ने कहा ...

holi gifts
holi gifts online

 

टिप्पणी करें

<< मुखपृष्ट

सोमवार, अगस्त 23, 2004

चीख उठा भगवान

चीख उठा मन्दिर की कारा से बन्दी भगवान-
पूजित होने दो पत्थर की जगह नया इन्सान,

जगत का होने दो कल्याण ।

मुक्त करो, अभियुक्त न हूँ, इन काली दीवारों से
और न अब गुमराह करो तुम श्रद्धा से, प्यारों से
ओ मंदिर-मस्जिद के तक्षक, ठेकेदार धरम के
करो स्वर्ग की पापभूमि पर मिट्टी का आह्वान,

जगत का होने दो कल्याण ।

मुझ पर नये सिंगार, न ढँक पाती जब मनु की लाज
मुझको भोग हज़ार, क्षुधा से मरता रहा समाज
बन्द करो, अब सहा न जाता मुझसे अत्याचार
बन्द करो, अब पत्थर पर तुम फूलों का बलिदान,

जगत का होने दो कल्याण ।

मंदिर का आंगन है जमघट लोभी का, वंचक का
महा अस्त्र है धर्म बन गया अन्यायी, शोषक का
कब तक बेच कफन मानव का, मूर्ति सजाओगे तुम,
कब तक चाँदी के टुकड़ों पर बेचोगे ईमान?

जगत का होने दो कल्याण ।

एक नया इन्सान भेद की कारा जो तोड़ेगा-
जो मिट्टी की शुचि काया में ही देवेत्व भरेगा
ओ मेरे गुमनाम विधाता, ओ मानव संतान
शिल्पकार अब बंद करो तुम प्रतिमा का निर्माण,

जगत का होने दो कल्याण ।

- श्यामनन्दन किशोर

7 टिप्पणियाँ:

6:44 am पर, Anonymous बेनामी ने कहा ...

बहुत ही बेहतरीन! पढ़कर कबीर के एक दोहे की याद आ जाती है की - 'पाथर पूजे हरी मिले, तो मैं पूजूँ पहाड़'

- sj

 
10:46 am पर, Blogger surili.verma ने कहा ...

bhut sunder. aaj ke smaj ki jivant udaharn

 
10:46 am पर, Blogger surili.verma ने कहा ...

bhut sunder. aaj ke smaj ki jivant udaharn

 
12:05 pm पर, Blogger Emily Katie ने कहा ...

You can Gifts for Birthday for your loved ones staying in India and suprise them !

 
2:07 am पर, Blogger Daisy ने कहा ...

You can Send Gifts to India Online for your loved ones staying in India and suprise them !

 
2:12 am पर, Blogger Daisy ने कहा ...

You can Send Birthday Gifts to India Online for your loved ones staying in India and suprise them !

 
2:34 am पर, Blogger Rossie ने कहा ...

Send Online Cakes to India for your loved ones staying in India and suprise them !

 

टिप्पणी करें

<< मुखपृष्ट

शुक्रवार, अगस्त 20, 2004

बेदर्द

मैंने निचोड़कर दर्द
मन को
मानो सूखने के ख्याल से
रस्सी पर डाल दिया है

और मन
सूख रहा है

बचा-खुचा दर्द
जब उड़ जायेगा
तब फिर पहन लूँगा मैं उसे

माँग जो रहा है मेरा
बेवकूफ तन
बिना दर्द का मन !

- भवानीप्रसाद मिश्र

1 टिप्पणियाँ:

2:12 am पर, Blogger Daisy ने कहा ...

You can Send Birthday Gifts to India Online for your loved ones staying in India and suprise them !

 

टिप्पणी करें

<< मुखपृष्ट

आराम से भाई ज़िन्दगी

आराम से भाई ज़िन्दगी
ज़रा आराम से
तेज़ी तुम्हारे प्यार की बर्दाशत नहीं होती अब
इतना कसकर किया आलिंगन
ज़रा ज़्यादा है जर्जर इस शरीर को

आराम से भाई ज़िन्दगी
ज़रा आराम से
तुम्हारे साथ-साथ दौड़ता नहीं फिर सकता अब मैं
ऊँची-नीची घाटियों पहाड़ियों तो क्या
महल-अटारियों पर भी

न रात-भर नौका विहार न खुलकर बात-भर हँसना
बतिया सकता हूँ हौले-हल्के बिल्कुल ही पास बैठकर

और तुम चाहो तो बहला सकती हो मुझे
जब तक अँधेरा है तब तक सब्ज़ बाग दिखलाकर

जो हो जाएँगे राख
छूकर सवेरे की किरन

सुबह हुए जाना है मुझे
आराम से भाई ज़िन्दगी
ज़रा आराम से ।

- भवानीप्रसाद मिश्र

3 टिप्पणियाँ:

12:07 pm पर, Blogger Emily Katie ने कहा ...

Cakes for Birthday

 
2:12 am पर, Blogger Daisy ने कहा ...

You can Send Birthday Gifts to India Online for your loved ones staying in India and suprise them !

 
2:34 am पर, Blogger Rossie ने कहा ...

Send Cakes to India Online for your loved ones staying in India and suprise them !

 

टिप्पणी करें

<< मुखपृष्ट

गुरुवार, अगस्त 19, 2004

तुम मृगनयनी

तुम मृगनयनी, तुम पिकबयनी
तुम छवि की परिणीता-सी,
अपनी बेसुध मादकता में
भूली-सी, भयभीता सी ।

तुम उल्लास भरी आई हो
तुम आई उच्छ्‌वास भरी,
तुम क्या जानो मेरे उर में
कितने युग की प्यास भरी ।

शत-शत मधु के शत-शत सपनों
की पुलकित परछाईं-सी,
मलय-विचुम्बित तुम ऊषा की
अनुरंजित अरुणाई-सी ;

तुम अभिमान-भरी आई हो
अपना नव-अनुराग लिए,
तुम क्या जानो कि मैं तप रहा
किस आशा की आग लिए ।

भरे हुए सूनेपन के तम
में विद्युत की रेखा-सी;
असफलता के पट पर अंकित
तुम आशा की लेखा-सी ;

आज हृदय में खिंच आई हो
तुम असीम उन्माद लिए,
जब कि मिट रहा था मैं तिल-तिल
सीमा का अपवाद लिए ।

चकित और अलसित आँखों में
तुम सुख का संसार लिए,
मंथर गति में तुम जीवन का
गर्व भरा अधिकार लिए ।

डोल रही हो आज हाट में
बोल प्यार के बोल यहाँ,
मैं दीवाना निज प्राणों से
करने आया मोल यहाँ ।

अरुण कपोलों पर लज्जा की
भीनी-सी मुस्कान लिए,
सुरभित श्वासों में यौवन के
अलसाए-से गान लिए ,

बरस पड़ी हो मेरे मरू में
तुम सहसा रसधार बनी,
तुममें लय होकर अभिलाषा
एक बार साकार बनी ।

तुम हँसती-हँसती आई हो
हँसने और हँसाने को,
मैं बैठा हूँ पाने को फिर
पा करके लुट जाने को ।

तुम क्रीड़ा की उत्सुकता-सी,
तुम रति की तन्मयता-सी;
मेरे जीवन में तुम आओ,
तुम जीवन की ममता-सी।

-भगवतीचरण वर्मा

4 टिप्पणियाँ:

9:49 am पर, Blogger Yashwant R. B. Mathur ने कहा ...

कल 25/06/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी http://nayi-purani-halchal.blogspot.in (दीप्ति शर्मा जी की प्रस्तुति में) पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

 
4:55 am पर, Blogger S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा ...

क्या सुन्दर... पढवाने के लिए सादर आभार.

 
6:39 am पर, Blogger सदा ने कहा ...

बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

 
6:05 am पर, Blogger Rahul Solanki ने कहा ...

बहुत ही आनंदित और भाव विभोर कर देने वाली कविता है आपकी | उसे पड़ने के बाद मन में अजीब सी कल्पना उत्पन्न होती है| शब्दों का चयन बड़ा ही प्रभावशाली है | Talented India News

 

टिप्पणी करें

<< मुखपृष्ट

मंगलवार, अगस्त 17, 2004

सत्य तो बहुत मिले

खोज में जब निकल ही आया
सत्य तो बहुत मिले ।

कुछ नये कुछ पुराने मिले
कुछ अपने कुछ बिराने मिले
कुछ दिखावे कुछ बहाने मिले
कुछ अकड़ू कुछ मुँह-चुराने मिले
कुछ घुटे-मँजे सफेदपोश मिले
कुछ ईमानदार ख़ानाबदोश मिले ।

कुछ ने लुभाया
कुछ ने डराया
कुछ ने परचाया-
कुछ ने भरमाया-
सत्य तो बहुत मिले
खोज में जब निकल ही आया ।

कुछ पड़े मिले
कुछ खड़े मिले
कुछ झड़े मिले
कुछ सड़े मिले
कुछ निखरे कुछ बिखरे
कुछ धुँधले कुछ सुथरे
सब सत्य रहे
कहे, अनकह ।

खोज में जब निकल ही आया
सत्य तो बहुत मिले
पर तुम
नभ के तुम कि गुहा-गह्वर के तुम
मोम के तुम, पत्थर के तुम
तुम किसी देवता से नहीं निकले:
तुम मेरे साथ मेरे ही आँसू में गले
मेरे ही रक्त पर पले
अनुभव के दाह पर क्षण-क्षण उकसती
मेरी अशमित चिता पर
तुम मेरे ही साथ जले ।

तुम-
तुम्हें तो
भस्म हो
मैंने फिर अपनी भभूत में पाया
अंग रमाया
तभी तो पाया ।

खोज में जब निकल ही आया,
सत्य तो बहुत मिले-
एक ही पाया ।

- अज्ञेय

1 टिप्पणियाँ:

2:11 am पर, Blogger Daisy ने कहा ...

You can Send Birthday Gifts to India Online for your loved ones staying in India and suprise them !

 

टिप्पणी करें

<< मुखपृष्ट

देखिये न मेरी कारगुज़ारी

अब देखिये न मेरी कारगुज़ारी
कि मैं मँगनी के घोड़े पर
सवारी पर
ठाकुर साहब के लिए उन की रियाया से लगान
और सेठ साहब के लिए पंसार-हट्टे की हर दुकान
से किराया
वसूल कर लाया हूँ ।
थैली वाले को थैली
तोड़े वाले को तोड़ा
-और घोड़े वाले को घोड़ा
सब को सब का लौटा दिया
अब मेरे पास यह घमंड है
कि सारा समाज मेरा एहसानमन्द है ।

- अज्ञेय

2 टिप्पणियाँ:

2:11 am पर, Blogger Daisy ने कहा ...

You can Send Birthday Gifts to India Online for your loved ones staying in India and suprise them !

 
2:21 am पर, Blogger Rossie ने कहा ...

Online Cake and Gift Delivery in India for your loved ones staying in India and suprise them !

 

टिप्पणी करें

<< मुखपृष्ट

रविवार, अगस्त 15, 2004

मैं बढ़ा ही जा रहा हूँ

मैं बढ़ा ही जा रहा हूँ, पर तुम्हें भूला नहीं हूँ ।

चल रहा हूँ, क्योंकि चलने से थकावट दूर होती,
जल रहा हूँ क्योंकि जलने से तमिस्त्रा चूर होती,
गल रहा हूँ क्योंकि हल्का बोझ हो जाता हृदय का,
ढल रहा हूँ क्योंकि ढलकर साथ पा जाता समय का ।

चाहता तो था कि रुक लूँ पार्श्व में क्षण-भर तुम्हारे
किन्तु अगणित स्वर बुलाते हैं मुझे बाँहे पसारे,
अनसुनी करना उन्हें भारी प्रवंचन कापुरुषता
मुँह दिखाने योग्य रक्खेगी ना मुझको स्वार्थपरता ।
इसलिए ही आज युग की देहली को लाँघ कर मैं-
पथ नया अपना रहा हूँ

पर तुम्हें भूला नहीं हूँ ।

ज्ञात है कब तक टिकेगी यह घड़ी भी संक्रमण की
और जीवन में अमर है भूख तन की, भूख मन की
विश्व-व्यापक-वेदना केवल कहानी ही नहीं है
एक जलता सत्य केवल आँख का पानी नहीं है ।

शान्ति कैसी, छा रही वातावरण में जब उदासी
तृप्ति कैसी, रो रही सारी धरा ही आज प्यासी
ध्यान तक विश्राम का पथ पर महान अनर्थ होगा
ऋण न युग का दे सका तो जन्म लेना व्यर्थ होगा ।
इसलिए ही आज युग की आग अपने राग में भर-
गीत नूतन गा रहा हूँ

पर तुम्हें भूला नहीं हूँ ।

सोचता हूँ आदिकवि क्या दे गये हैं हमें थाती
क्रौञ्चिनी की वेदना से फट गई थी हाय छाती
जबकि पक्षी की व्यथा से आदिकवि का व्यथित अन्तर
प्रेरणा कैसे न दे कवि को मनुज कंकाल जर्जर ।

अन्य मानव और कवि में है बड़ा कोई ना अन्तर
मात्र मुखरित कर सके, मन की व्यथा, अनुभूति के स्वर
वेदना असहाय हृदयों में उमड़ती जो निरन्तर
कवि न यदि कह दे उसे तो व्यर्थ वाणी का मिला वर
इसलिए ही मूक हृदयों में घुमड़ती विवशता को-
मैं सुनाता जा रहा हूँ

पर तुम्हें भूला नहीं हूँ ।

आज शोषक-शोषितों में हो गया जग का विभाजन
अस्थियों की नींव पर अकड़ा खड़ा प्रासाद का तन
धातु के कुछ ठीकरों पर मानवी-संज्ञा-विसर्जन
मोल कंकड़-पत्थरों के बिक रहा है मनुज-जीवन ।

एक ही बीती कहानी जो युगों से कह रहे हैं
वज्र की छाती बनाए, सह रहे हैं, रह रहे हैं
अस्थि-मज्जा से जगत के सुख-सदन गढ़ते रहे जो
तीक्ष्णतर असिधार पर हँसते हुए बढ़ते रहे जो
अश्रु से उन धूलि-धूसर शूल जर्जर क्षत पगों को-
मैं भिगोता जा रहा हूँ

पर तुम्हें भूला नहीं हूँ ।

आज जो मैं इस तरह आवेश में हूँ अनमना हूँ
यह न समझो मैं किसी के रक्त का प्यासा बना हूँ
सत्य कहता हूँ पराए पैर का काँटा कसकता
भूल से चींटी कहीं दब जाय तो भी हाय करता

पर जिन्होंने स्वार्थवश जीवन विषाक्त बना दिया है
कोटि-कोटि बुभुक्षितों का कौर तलक छिना लिया है
'लाभ शुभ' लिख कर ज़माने का हृदय चूसा जिन्होंने
और कल बंगालवाली लाश पर थूका जिन्होंने ।

बिलखते शिशु की व्यथा पर दृष्टि तक जिनने न फेरी
यदि क्षमा कर दूँ उन्हें धिक्कार माँ की कोख मेरी
चाहता हूँ ध्वंस कर देना विषमता की कहानी
हो सुलभ सबको जगत में वस्त्र, भोजन, अन्न, पानी ।
नव भवन निर्माणहित मैं जर्जरित प्राचीनता का-
गढ़ ढ़हाता जा रहा हूँ ।

पर तुम्हें भूला नहीं हूँ ।

- शिवमंगल सिंह सुमन

1 टिप्पणियाँ:

2:11 am पर, Blogger Daisy ने कहा ...

You can Send Birthday Gifts to India Online for your loved ones staying in India and suprise them !

 

टिप्पणी करें

<< मुखपृष्ट

रविवार, अगस्त 08, 2004

एक बार आ जाओ प्रिये

वेग तीव्र है आज पवन का
सूर्य किरण नोकीली है,
राही दुर्बल ओ' प्यासा है
राह बड़ी पथरीली है,
बरगद की ठंड़ी छाया सा
आंचल अपना फैलाओ प्रिये,
बस एक बार आ जाओ प्रिये ।

मेरे जीवन के कुरुक्षेत्र में
दुविधा के बादल घिरे हुए,
भय की चीखों से, अंधकार में
मन के सब अर्जुन डरे हुए,
कृष्ण-वाणी का सूरज बन
हर संशय आज मिटाओ प्रिये,
बस एक बार आ जाओ प्रिये ।

चित्रकार ने रंगी नहीं जो
शिल्पकार ने गढ़ी नहीं जो,
लेखक के अगिनत शब्दों में
जग ने अब तक पढ़ी नहीं जो,
कवि की सूखी उस कल्पना को
प्राणों से भर जाओ प्रिये,
बस एक बार आ जाओ प्रिये ।

- मुनीश

(शेष और भी...)


3 टिप्पणियाँ:

12:11 pm पर, Blogger Emily Katie ने कहा ...

Gifts to India Online Delivery

 
2:10 am पर, Blogger Daisy ने कहा ...

You can Send Birthday Gifts to India Online for your loved ones staying in India and suprise them !

 
2:35 am पर, Blogger Rossie ने कहा ...

Online Cakes Delivery for your loved ones staying in India and suprise them !

 

टिप्पणी करें

<< मुखपृष्ट

मंगलवार, अगस्त 03, 2004

बौड़म जी बस में

बस में थी भीड़
और धक्के ही धक्के,
यात्री थे अनुभवी,
और पक्के ।

पर अपने बौड़म जी तो
अंग्रेज़ी में
सफ़र कर रहे थे,
धक्कों में विचर रहे थे ।
भीड़ कभी आगे ठेले,
कभी पीछे धकेले ।
इस रेलमपेल
और ठेलमठेल में,
आगे आ गए
धकापेल में ।

और जैसे ही स्टाप पर
उतरने लगे
कण्डक्टर बोला-
ओ मेरे सगे !
टिकिट तो ले जा !

बौड़म जी बोले-
चाट मत भेजा !
मैं बिना टिकिट के
भला हूँ,
सारे रास्ते तो
पैदल ही चला हूँ ।

- अशोक चक्रधर


3 टिप्पणियाँ:

12:12 pm पर, Blogger Emily Katie ने कहा ...

Gifts to India Online

 
2:10 am पर, Blogger Daisy ने कहा ...

You can Send Birthday Gifts to India Online for your loved ones staying in India and suprise them !

 
2:36 am पर, Blogger Rossie ने कहा ...

Gifts for Him Online for your loved ones staying in India and suprise them !

 

टिप्पणी करें

<< मुखपृष्ट

रविवार, अगस्त 01, 2004

विवशता

मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार
पथ ही मुड़ गया था ।

गति मिली, मैं चल पड़ा,
पथ पर कहीं रुकना मना था
राह अनदेखी, अजाना देश
संगी अनसुना था ।

चाँद सूरज की तरह चलता,
न जाना रात दिन है
किस तरह हम-तुम गए मिल,
आज भी कहना कठिन है ।

तन न आया माँगने अभिसार
मन ही मन जुड़ गया था
मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार
पथ ही मुड़ गया था ।।

देख मेरे पंख चल, गतिमय
लता भी लहलहाई
पत्र आँचल में छिपाए मुख-
कली भी मुस्कराई ।

एक क्षण को थम गए डैने,
समझ विश्राम का पल
पर प्रबल संघर्ष बनकर,
आ गई आँधी सदल-बल ।

डाल झूमी, पर न टूटी,
किंतु पंछी उड़ गया था
मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार
पथ ही मुड़ गया था ।।

- शिवमंगल सिंह सुमन

2 टिप्पणियाँ:

2:36 am पर, Blogger Rossie ने कहा ...

Online Gifts for your loved ones staying in India and suprise them !

 
2:31 am पर, Blogger Daisy ने कहा ...

Valentine Gifts
Valentine Day Gifts
Valentine Flowers
Valentine Roses
Valentine Cakes

 

टिप्पणी करें

<< मुखपृष्ट

तुम सुधि बन-बनकर बार-बार

तुम सुधि बन-बनकर बार-बार
क्यों कर जाती हो प्यार मुझे?
फिर विस्मृति बन तन्मयता का
दे जाती हो उपहार मुझे ।

मैं करके पीड़ा को विलीन
पीड़ा में स्वयं विलीन हुआ
अब असह बन गया देवि,
तुम्हारी अनुकम्पा का भार मुझे ।

माना वह केवल सपना था,
पर कितना सुन्दर सपना था
जब मैं अपना था, और सुमुखि
तुम अपनी थीं, जग अपना था ।

जिसको समझा था प्यार, वही
अधिकार बना पागलपन का
अब मिटा रहा प्रतिपल,
तिल-तिल, मेरा निर्मित संसार मुझे ।

- भगवतीचरण वर्मा

1 टिप्पणियाँ:

2:38 am पर, Blogger Rossie ने कहा ...

Online Gift Delivery for your loved ones staying in India and suprise them !

 

टिप्पणी करें

<< मुखपृष्ट