रविवार, अगस्त 01, 2004

विवशता

मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार
पथ ही मुड़ गया था ।

गति मिली, मैं चल पड़ा,
पथ पर कहीं रुकना मना था
राह अनदेखी, अजाना देश
संगी अनसुना था ।

चाँद सूरज की तरह चलता,
न जाना रात दिन है
किस तरह हम-तुम गए मिल,
आज भी कहना कठिन है ।

तन न आया माँगने अभिसार
मन ही मन जुड़ गया था
मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार
पथ ही मुड़ गया था ।।

देख मेरे पंख चल, गतिमय
लता भी लहलहाई
पत्र आँचल में छिपाए मुख-
कली भी मुस्कराई ।

एक क्षण को थम गए डैने,
समझ विश्राम का पल
पर प्रबल संघर्ष बनकर,
आ गई आँधी सदल-बल ।

डाल झूमी, पर न टूटी,
किंतु पंछी उड़ गया था
मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार
पथ ही मुड़ गया था ।।

- शिवमंगल सिंह सुमन

2 टिप्पणियाँ:

2:36 am पर, Blogger Rossie ने कहा ...

Online Gifts for your loved ones staying in India and suprise them !

 
2:31 am पर, Blogger Daisy ने कहा ...

Valentine Gifts
Valentine Day Gifts
Valentine Flowers
Valentine Roses
Valentine Cakes

 

टिप्पणी करें

<< मुखपृष्ट