सोमवार, जून 28, 2004

आज शाम है बहुत उदास

आज शाम है बहुत उदास
केवल मैं हूँ अपने पास ।

दूर कहीं पर हास-विलास
दूर कहीं उत्सव-उल्लास
दूर छिटक कर कहीं खो गया
मेरा चिर-संचित विश्वास ।

कुछ भूला सा और भ्रमा सा
केवल मैं हूँ अपने पास
एक धुंध में कुछ सहमी सी
आज शाम है बहुत उदास ।

एकाकीपन का एकांत
कितना निष्प्रभ, कितना क्लांत ।

थकी-थकी सी मेरी साँसें
पवन घुटन से भरा अशान्त,
ऐसा लगता अवरोधों से
यह अस्तित्व स्वयं आक्रान्त ।

अंधकार में खोया-खोया
एकाकीपन का एकांत
मेरे आगे जो कुछ भी वह
कितना निष्प्रभ, कितना क्लांत ।

उतर रहा तम का अम्बार
मेरे मन में व्यथा अपार ।

आदि-अन्त की सीमाओं में
काल अवधि का यह विस्तार
क्या कारण? क्या कार्य यहाँ पर?
एक प्रशन मैं हूँ साकार ।

क्यों बनना? क्यों बनकर मिटना?
मेरे मन में व्यथा अपार
औ समेटता निज में सब कुछ
उतर रहा तम का अम्बार ।

सौ-सौ संशय, सौ-सौ त्रास,
आज शाम है बहुत उदास ।

जोकि आज था तोड़ रहा वह
बुझी-बुझी सी अन्तिम साँस
और अनिश्चित कल में ही है
मेरी आस्था, मेरी आस ।

जीवन रेंग रहा है लेकर
सौ-सौ संशय, सौ-सौ त्रास,
और डूबती हुई अमा में
आज शाम है बहुत उदास ।

- भगवतीचरण वर्मा

4 टिप्पणियाँ:

10:48 am पर, Blogger v9y ने कहा ...

वाह!

क्या यह सम्भव होगा कि कवि (भगवती चरण वर्मा जी) के बारे में भी कुछ जानकारी उपलब्ध करा सकें. मुझे याद है कि हमारी दसवीं (या ग्यारवीं) की किताब में उनकी कविता(एँ) थीं. पर कौन सी, यह अब याद नहीं.

बहरहाल धन्यवाद.

 
6:18 am पर, Blogger Rahul Solanki ने कहा ...

कविता के माद्यम से बहुत ही कम शब्दों में काफी कुछ समझया गया है | आपकी यह कविता वाकई जाग्रत करने वाली है | मै इसे अपने मित्रो और रिश्दारो को जरूर शेयर करूँगा | Talented India News App

 
2:26 am पर, Blogger Rossie ने कहा ...

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10:21 pm पर, Blogger Daisy ने कहा ...

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