ज़िन्दगी
मित्रों,
जीवन एवं उसके अर्थ पर अनगिनत रचनाएँ लिखी गयी हैं । सो मैं भी आपके समक्ष अपनी एक तुच्छ रचना प्रस्तुत कर रहा हूं ।
ज़िन्दगी क्यों अजब इक पहेली सी है
क्षण में अंजान ,क्षण में सहेली सी है ।
है उल्लास थोडा, भय भी कुछ है मिला
काँपती नव-वधू की हथेली सी है ।
कोहरे मे रात के, भोर की ये किरण
तप्त मरु में जो खिलती चमेली सी है ।
नगर की धुंध में, स्वप्न बन रह गयी
गाँव की उस पुरानी हवेली सी है ।
मत्त श्रॄंगार में, प्रौढ से बेखबर
नार इतरा के चलती नवेली सी है ।
नीम की शाख के रस में लिपटी हुई
खट्टी ईमली, कभी गुड की भेली सी है ।
सूखे हैं पात सारे, रंग सबके उडे
लगती क्यों 'मन' को फिर भी रंगोली सी है ।
- मुनीश
7 टिप्पणियाँ:
wonder full!
It touched to the bottom of my Heart.
Georgeous!
Pankaj UPADHYAY from AUSTRALIA
आपकी तुच्छ कविता कहीं अधिक ही ऊंची जान पड़ती है। बहुत ही सुंदर संरचना है।
प्रोत्साहन के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद।
Man ko chone wali kavita
Jindagi jitani jee tapovan see hai
Jindagi jitana chahege anmol see hai
Jindagi jitana sochage paheli see hai
Asha kumar kundra
Online Cake and Gift Delivery in India for your loved ones staying in India and suprise them !
Valentine Flowers
Valentine Roses
Valentine Gifts for Husband
Valentine Gifts for Wife
Valentine Gifts for Girlfriend
Valentine Gifts for Boyfriend
टिप्पणी करें
<< मुखपृष्ट