गुरुवार, जून 10, 2004

तपते दिन की अगन

बुझ गयी तपते हुए दिन की अगन
सांझ ने चुपचाप ही पी ली जलन
रात झुक आयी पहन उजला वसन
'प्राण' तुम क्यूँ मौन हो, कुछ गुनगुनाओ
चाँदनी के फूल चुन लो मुस्कुराओ ।

एक नीली झील सा फैला अचल
आज ये आकाश है कितना सजल
चांद जैसे डूबता उभरा कंवल
रात भर इस रूप का जादू जगाओ
'प्राण' तुम क्यूँ मौन हो, कुछ गुनगुनाओ ।

चल रहा है चैत का चंचल का पवन
बाँध लो बिख्ररे हुए कुंतल सघन
पोंछ लो कजरा उदासीले नयन
मांग भर लो, भाल पर बिंदिया सजाओ
'प्राण' तुम क्यूँ मौन हो, कुछ गुनगुनाओ ।

- पं. विनोद शर्मा

2 टिप्पणियाँ:

2:23 am पर, Blogger Rossie ने कहा ...

Send Gifts to India for your loved ones staying in India and suprise them !

 
2:44 am पर, Blogger Daisy ने कहा ...

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