रविवार, जून 20, 2004

दरिंदा

दरिंदा
आदमी की आवाज़ में
बोला

स्वागत में मैंने
अपना दरवाज़ा
खोला

और दरवाज़ा
खोलते ही समझा
कि देर हो गई

मानवता
थोडी बहुत जितनी भी थी
ढेर हो गई !

- भवानीप्रसाद मिश्र

( मित्रों आप अपनी टिप्पणियाँ, सुझाव एवं आलोचनाएँ hindipoetry@gmail.com पर भेज सकते हैं । )

3 टिप्पणियाँ:

5:36 am पर, Anonymous rajendra shukla ने कहा ...

kavita achhi lagi

 
2:25 am पर, Blogger Rossie ने कहा ...

Send Gifts Online for your loved ones staying in India and suprise them !

 
2:42 am पर, Blogger Daisy ने कहा ...

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