दरिंदा
दरिंदा
आदमी की आवाज़ में
बोला
स्वागत में मैंने
अपना दरवाज़ा
खोला
और दरवाज़ा
खोलते ही समझा
कि देर हो गई
मानवता
थोडी बहुत जितनी भी थी
ढेर हो गई !
- भवानीप्रसाद मिश्र
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3 टिप्पणियाँ:
kavita achhi lagi
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