कुछ सुन लें, कुछ अपनी कह लें
कुछ सुन लें, कुछ अपनी कह लें ।
जीवन-सरिता की लहर-लहर,
मिटने को बनती यहाँ प्रिये
संयोग क्षणिक, फिर क्या जाने
हम कहाँ और तुम कहाँ प्रिये ।
पल-भर तो साथ-साथ बह लें,
कुछ सुन लें, कुछ अपनी कह लें ।
आओ कुछ ले लें औ' दे लें ।
हम हैं अजान पथ के राही,
चलना जीवन का सार प्रिये
पर दुःसह है, अति दुःसह है
एकाकीपन का भार प्रिये ।
पल-भर हम-तुम मिल हँस-खेलें,
आओ कुछ ले लें औ' दे लें ।
हम-तुम अपने में लय कर लें ।
उल्लास और सुख की निधियाँ,
बस इतना इनका मोल प्रिये
करुणा की कुछ नन्हीं बूँदें
कुछ मृदुल प्यार के बोल प्रिये ।
सौरभ से अपना उर भर लें,
हम तुम अपने में लय कर लें ।
हम-तुम जी-भर खुलकर मिल लें ।
जग के उपवन की यह मधु-श्री,
सुषमा का सरस वसन्त प्रिये
दो साँसों में बस जाय और
ये साँसें बनें अनन्त प्रिये ।
मुरझाना है आओ खिल लें,
हम-तुम जी-भर खुलकर मिल लें ।
- भगवतीचरण वर्मा
8 टिप्पणियाँ:
bahut sundar rachana hai man ko bhaa gai aapko hardik subhakaamnayen .....
कुछ सुन लें, कुछ अपनी कह लें । AADARNIY BHAGVATICHARAN JI KI KAVITA MAN KO CHHU GAI ......
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
बीहुत खूब।
Very nice
अगर देखा जाये तो कवी आज के जीवन का मुख्या आधार स्तम्भ है जब जब इस देश की राजनीति गलत राह की और आगे बदती है तब तब कविताओ के माद्यम से उसे सही रास्ते पर लाया गया है | Talented India News App
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