यक्ष प्रश्न
जो कल थे,
वे आज नहीं हैं ।
जो आज हैं,
वे कल नहीं होंगे ।
होने, न होने का क्रम,
इसी तरह चलता रहेगा,
हम हैं, हम रहेंगे,
यह भ्रम भी सदा पलता रहेगा ।
सत्य क्या है ?
होना या न होना?
या दोनों ही सत्य हैं?
जो है, उसका होना सत्य है,
जो नहीं है, उसका न होना सत्य है ।
मुझे लगता है कि
होना-न-होना एक ही सत्य के
दो आयाम हैं,
शेष सब समझ का फेर,
बुद्धि के व्यायाम हैं ।
किन्तु न होने के बाद क्या होता है,
यह प्रश्न अनुत्तरित है ।
प्रत्येक नया नचिकेता,
इस प्रश्न की खोज में लगा है ।
सभी साधकों को इस प्रश्न ने ठगा है ।
शायद यह प्रश्न, प्रश्न ही रहेगा ।
यदि कुछ प्रश्न अनुत्तरित रहें
तो इसमें बुराई क्या है ?
हाँ, खोज का सिलसिला न रुके,
धर्म की अनुभूति,
विज्ञान का अनुसंधान,
एक दिन, अवश्य ही
रुद्ध द्वार खोलेगा ।
प्रश्न पूछने के बजाय
यक्ष स्वयं उत्तर बोलेगा ।
- अटल बिहारी वाजपेयी
4 टिप्पणियाँ:
कविता के भाव बहुत अच्छे लगे ।
kabita bahut achhi thi
Kavita satay ke khoj kee tarah hai jo kabhi poori nahi hoti. Asha kumar kundra
श्री अटल बिहारी जी की कविताओं को पढ़ने का अवसर मुझे यूँ बहुत ही कम मिला हैं। यहाँ कविता पढ़ कर अच्छा लगा ।
यक्ष प्रश्न बहुत अच्छी रचना हैं। एक बड़े कवि की।
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