शनिवार, अक्तूबर 08, 2005

यक्ष प्रश्न

जो कल थे,
वे आज नहीं हैं ।
जो आज हैं,
वे कल नहीं होंगे ।
होने, न होने का क्रम,
इसी तरह चलता रहेगा,
हम हैं, हम रहेंगे,
यह भ्रम भी सदा पलता रहेगा ।

सत्य क्या है ?
होना या न होना?
या दोनों ही सत्य हैं?
जो है, उसका होना सत्य है,
जो नहीं है, उसका न होना सत्य है ।
मुझे लगता है कि
होना-न-होना एक ही सत्य के
दो आयाम हैं,
शेष सब समझ का फेर,
बुद्धि के व्यायाम हैं ।

किन्तु न होने के बाद क्या होता है,
यह प्रश्न अनुत्तरित है ।

प्रत्येक नया नचिकेता,
इस प्रश्न की खोज में लगा है ।
सभी साधकों को इस प्रश्न ने ठगा है ।
शायद यह प्रश्न, प्रश्न ही रहेगा ।
यदि कुछ प्रश्न अनुत्तरित रहें
तो इसमें बुराई क्या है ?
हाँ, खोज का सिलसिला न रुके,
धर्म की अनुभूति,
विज्ञान का अनुसंधान,
एक दिन, अवश्य ही
रुद्ध द्वार खोलेगा ।
प्रश्न पूछने के बजाय
यक्ष स्वयं उत्तर बोलेगा ।

- अटल बिहारी वाजपेयी

4 टिप्पणियाँ:

1:46 am पर, Blogger अनुनाद सिंह ने कहा ...

कविता के भाव बहुत अच्छे लगे ।

 
4:04 am पर, Anonymous uttam singh ने कहा ...

kabita bahut achhi thi

 
6:17 am पर, Anonymous Asha kumar kundra ने कहा ...

Kavita satay ke khoj kee tarah hai jo kabhi poori nahi hoti. Asha kumar kundra

 
11:53 am पर, Blogger Unknown ने कहा ...

श्री अटल बिहारी जी की कविताओं को पढ़ने का अवसर मुझे यूँ बहुत ही कम मिला हैं। यहाँ कविता पढ़ कर अच्छा लगा ।
यक्ष प्रश्न बहुत अच्छी रचना हैं। एक बड़े कवि की।

 

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