बुधवार, मई 04, 2005

सुर्ख़ हथेलियाँ

पहली बार
मैंने देखा
भौंरे को कमल में
बदलते हुए,
फिर कमल को बदलते
नीले जल में,
फिर नीले जल को
असंख्य श्वेत पक्षियों में,
फिर श्वेत पक्षियों को बदलते
सुर्ख़ आकाश में,
फिर आकाश को बदलते
तुम्हारी हथेलियों में,
और मेरी आँखें बन्द करते
इस तरह आँसुओं को
स्वप्न बनते -
पहली बार मैंने देखा ।

- सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

3 टिप्पणियाँ:

11:50 pm पर, Blogger अनूप भार्गव ने कहा ...

बहुत ही सुन्दर कविता है । विस्तार को यकायक सहजता से समेट लेने की कला ।

 
12:37 am पर, Blogger Pratyaksha ने कहा ...

बहुत सुन्दर.......पढ कर अच्छा लगा....

 
12:50 pm पर, Blogger Munish ने कहा ...

प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद । अगर आप अपनी कोई मनपसन्द रचना 'कविता सागर' पर पढ़ना चाहते हैं तो अवश्य लिखें ।

 

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