सुर्ख़ हथेलियाँ
पहली बार
मैंने देखा
भौंरे को कमल में
बदलते हुए,
फिर कमल को बदलते
नीले जल में,
फिर नीले जल को
असंख्य श्वेत पक्षियों में,
फिर श्वेत पक्षियों को बदलते
सुर्ख़ आकाश में,
फिर आकाश को बदलते
तुम्हारी हथेलियों में,
और मेरी आँखें बन्द करते
इस तरह आँसुओं को
स्वप्न बनते -
पहली बार मैंने देखा ।
- सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
3 टिप्पणियाँ:
बहुत ही सुन्दर कविता है । विस्तार को यकायक सहजता से समेट लेने की कला ।
बहुत सुन्दर.......पढ कर अच्छा लगा....
प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद । अगर आप अपनी कोई मनपसन्द रचना 'कविता सागर' पर पढ़ना चाहते हैं तो अवश्य लिखें ।
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