गुरुवार, अप्रैल 28, 2005

संवेदना

क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी ?
क्या करूँ ?

मैं दुःखी जब-जब हुआ
संवेदना तुमने दिखाई,
मैं कृतज्ञ हुआ हमेशा
रीति दोनों ने निभाई,
किंतु इस आभार का अब
हो उठा है बोझ भारी;
क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी ?
क्या करूँ ?

एक भी उच्छ्वास मेरा
हो सका किस दिन तुम्हारा ?
उस नयन से बह सकी कब
इस नयन की अश्रु-धारा ?
सत्य को मूँदे रहेगी
शब्द की कब तक पिटारी ?
क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी ?
क्या करूँ ?

कौन है जो दूसरे को
दुःख अपना दे सकेगा ?
कौन है जो दूसरे से
दुःख उसका ले सकेगा ?
क्यों हमारे बीच धोखे
का रहे व्यापार जारी ?
क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी ?
क्या करूँ ?

क्यों न हम लें मान, हम हैं
चल रहे ऐसी डगर पर,
हर पथिक जिस पर अकेला,
दुःख नहीं बँटते परस्पर,
दूसरों की वेदना में
वेदना जो है दिखाता,
वेदना से मुक्ति का निज
हर्ष केवल वह छिपाता,
तुम दुःखी हो तो सुखी मैं
विश्व का अभिशाप भारी !
क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी ?
क्या करूँ ?

- हरिवंशराय बच्चन

3 टिप्पणियाँ:

2:54 am पर, Anonymous बेनामी ने कहा ...

Ab to aansoo barbas hi beh padenge...

 
7:22 am पर, Anonymous बेनामी ने कहा ...

ye to aisa lagta hai k jaise meri hi kahani kahi ja rahi ho... aajkal vaise hi bhari man ho raha hai aise main padh k accha laga..

-prashant

 
5:14 am पर, Anonymous बेनामी ने कहा ...

"...रीति दोनों ने निभाई,.."

सत्य वचन!

- sj

 

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