प्राप्ति
तुम्हें खोजता था मैं,
पा नहीं सका,
हवा बन बहीं तुम, जब
मैं थका, रुका ।
मुझे भर लिया तुमने गोद में,
कितने चुम्बन दिये,
मेरे मानव-मनोविनोद में
नैसर्गिकता लिये;
सूखे श्रम-सीकर वे
छबि के निर्झर झरे नयनों से,
शक्त शिराएँ हुईं रक्त-वाह ले,
मिलीं - तुम मिलीं, अन्तर कह उठा
जब थका, रुका ।
- सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'
2 टिप्पणियाँ:
Best Online Gift Sites
Gifts for Him Online for your loved ones staying in India and suprise them !
टिप्पणी करें
<< मुखपृष्ट