चुम्बन
लहर रही शशिकिरण चूम निर्मल यमुनाजल,
चूम सरित की सलिल राशि खिल रहे कुमुद दल
कुमुदों के स्मिति-मन्द खुले वे अधर चूम कर,
बही वायु स्वछन्द, सकल पथ घूम घूम कर
है चूम रही इस रात को वही तुम्हारे मधु अधर
जिनमें हैं भाव भरे हुए सकल-शोक-सन्तापहर !
- सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'
4 टिप्पणियाँ:
SUNDAR, ATISUNDAR !!
SUNDAR, ATISUNDAR !!
SUNDAR, ATISUNDAR !!
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