शनिवार, अक्तूबर 02, 2004

उत्तर

इस एक बूँद आँसू में
चाहे साम्राज्य बहा दो
वरदानों की वर्षा से
यह सूनापन बिखरा दो

इच्छा‌ओं की कम्पन से
सोता एकान्त जगा दो,
आशा की मुस्कराहट पर
मेरा नैराश्य लुटा दो ।

चाहे जर्जर तारों में
अपना मानस उलझा दो,
इन पलकों के प्यालो में
सुख का आसव छलका दो

मेरे बिखरे प्राणों में
सारी करुणा ढुलका दो,
मेरी छोटी सीमा में
अपना अस्तित्व मिटा दो !

पर शेष नहीं होगी यह
मेरे प्राणों की क्रीड़ा,
तुमको पीड़ा में ढूँढा
तुम में ढूँढूँगी पीड़ा !

- महादेवी वर्मा

1 टिप्पणियाँ:

2:50 am पर, Blogger Rossie ने कहा ...

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