मत कहो, आकाश में कुहरा घना है
मत कहो, आकाश में कुहरा घना है,
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है ।
सूर्य हमने भी नहीं देखा सुबह से,
क्या करोगे, सूर्य का क्या देखना है ।
इस सड़क पर इस क़दर कीचड़ बिछी है,
हर किसी का पाँव घुटनों तक सना है ।
पक्ष औ' प्रतिपक्ष संसद में मुखर हैं,
बात इतनी है कि कोई पुल बना है
रक्त वर्षों से नसों में खौलता है,
आप कहते हैं क्षणिक उत्तेजना है ।
हो गई हर घाट पर पूरी व्यवस्था,
शौक से डूबे जिसे भी डूबना है ।
दोस्तों ! अब मंच पर सुविधा नहीं है,
आजकल नेपथ्य में संभावना है ।
- दुष्यन्त कुमार
12 टिप्पणियाँ:
हिन्दी में गज़ल के प्रणेता दुष्यन्त कुमार जी की इस खूबसूरत गज़ल के लिये धन्यवाद ।
अनूप
sundar
वाह वाह!
कभी कभी कुछ कविताये, किन्ही स्थितियों मे कितनी प्रासंगिक हो जाती है, ये इस कविता को पढकर जाना जा सकता है। ये कविता बहुत ही सुन्दर है, लेकिन सबसे सुन्दर तो टाइमिंग है, जब मैने यह कविता पढी।
जीतू जी,
तनिक हमें भी बतायें आपकी टाइमिंग के बारे में :)
वैसे यह कविता यहाँ पढ़ पाने के लिये असली धन्यवाद तो खुशबू का देना चाहिये जिन्होंने मुझे दुष्यन्त कुमार जी की अत्यन्त सुन्दर पुस्तक भेंट की । अगर कविता सागर के पाठकों में से कोई न्यू-जर्सी में रहता है तो उनका रेडियो-अरोमा सुनना न भूलें।
खूबसूरत गज़ल के लिये शुक्रिया
kavita saagar me aakar gote lagaye...dhanya ho gaya....ye sachha prayaas hai hindi ko oopar laane ka...issee prayaas se hindi vaishveekaran ho sakega.
saadhuwaad.
sanjaypatel1961@gmail.com
Bahut Sundar kavita.. maan ko chuu lene waali
आपकी इस कविता मे, किसी इंसान के मन के अंदर छुपे हुए गुस्से का वर्णन बखूबी किया गया है| दुनिया में हर चीज की एक सीमा होती जब वह सीमा पार हो जाती है तब आता हे बदलाव | Talented India News
Aapki ye kavita bhut hi feeling wali lagi jo dil me utar jaye... atti sunadar
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Continue your great work!! You are an inspiration
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