रविवार, जनवरी 08, 2006

आज तुम मेरे लिए हो

प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो ।

मैं जगत के ताप से डरता नहीं अब,
मैं समय के शाप से डरता नहीं अब,
आज कुंतल छाँह मुझपर तुम किए हो
प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो ।

रात मेरी, रात का श्रृंगार मेरा,
आज आधे विश्व से अभिसार मेरा,
तुम मुझे अधिकार अधरों पर दिए हो
प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो।

वह सुरा के रूप से मोहे भला क्या,
वह सुधा के स्वाद से जाए छला क्या,
जो तुम्हारे होंठ का मधु-विष पिए हो
प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो।

मृत-सजीवन था तुम्हारा तो परस ही,
पा गया मैं बाहु का बंधन सरस भी,
मैं अमर अब, मत कहो केवल जिए हो
प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो।

- हरिवंशराय बच्चन

4 टिप्पणियाँ:

12:07 am पर, Anonymous सिंह स्टाइल स्टूडियो ने कहा ...

बहुत खूब...

 
6:48 am पर, Blogger Rahul Solanki ने कहा ...

बहुत ही शानदार कविता | आप की कविता में उपयोग किये गए शब्द बहुत ही प्ताभ्वित करते है| और मन में एक बहुत हो घर असर छोड़ते है | Talented India News

 
4:32 am पर, Blogger Daisy ने कहा ...

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11:23 am पर, Blogger Daisy ने कहा ...

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